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भारतीय इतिहास में धार्मिक प्रतीक के चिन्ह

धार्मिक प्रतीक के चिन्ह
ताबीज इनके द्वारा वे भौतिक व्याधियों अथवा प्रेतात्माओं से छुटकारा पाने का प्रयास करते थे।
स्वास्तिक सूर्योपासना का प्रतीक है, यह चिन्ह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है।
योगी के रुप में बैठे पुरुष (शिव) शिव को आज भी योगीश्वर के नाम से संबोधित किया जाता है।
श्रृंग महाभारत में शिव को ‘त्रि-श्रृंग’ कहा गया है। (श्रृंग शिव से संबोधित
बैल संहारकारी देवता शिव का वाहन था, यह सर्वाधिक धार्मिक महत्व का पशु था।
बकरा बलि हेतु प्रयुक्त होता था।
भैंसा एक मुद्रा पर भैंसा व्यक्ति को उठाते हुए एवं एक अन्य मुद्रा पर व्यक्तियों के समूह पर आक्रमण करते हुए दिखाया गया है, जो किसी देवता की शत्रुओं पर विजय का प्रतीक है।
नाग इनकी भी पूजा होती थी।
बैल, भेड़ एवं बकरी की हड्डियों के ढेर पशुबलि का द्योतक।
कांस्य नर्तकी मंदिर की कल्पना करने पर नृत्य भी धार्मिक महत्व का हो सकता है।
शवों के साथ बर्तन एवं अन्य सामग्री मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास।
शवों को उत्तर-दक्षिण दिशा में लिटाना धार्मिक विश्वास का द्योतक।
दो शवों को एक साथ गाड़ा जाना पुरुष की मृत्यु के बाद संभवतः स्त्री का सती होना।
  • सिंधु घाटी की प्राचीन संस्कृति और आज के हिंदू धर्म के बीच जैव संबंध का प्रमाण पत्थर, पेड़ और पशु की पूजा से मिलता है।